शनिवार, 19 जुलाई 2014

एक कॉमरेड का कमरा...

एक कॉमरेड का कमरा...
बिखरे पड़े जली-बुझे सिगरिटों और बीड़ी के ढूढ़
अस्त-व्यस्त पड़ीं किताबें...
दीमकों से चटीं पड़ी किताब के ऊपर रखा.. 
हफ्तों से न खाया गया..एक पुराना पान ।
किताबों की मोटी लाल जिल्द...
जिसपर हैं मार्क्स, लेनिन, फ्रायड के चित्र
और कमरे की दीवारों पर चिग्वेरा।
जब कॉमरेड ठिकाना बदलता है...
तो....
वर्षों पहले घर से लाया हुआ
टीन का जंग लगा बक्सा 
और उसमें रखी किताबें...
कमरें में छूट रहीं हैं
खाली शराब की बोतलें 
जिसमें क्वाटरों की संख्या ज्यादा है
क्रांति का सपना पाले 
कॉमरेड की किचन !
गैर मंझे, जमाने से रखे 
बर्तन....
लग गई है उनमें अब जंग..
कॉमरेड की प्रेमिका आती हैं
अहिस्ता- अहिस्ता....
और सीधे धूल और जंग लगे 
बासनों को मांजने लगती हैं
जानते हुए भी...
कि कॉमरेड की जेब में 
बिंडल और माचिस के सिवा 
कुछ नहीं हैं....कितना धैर्य होता है सच में.....भूपेंद्र

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