“भुतनी नाचे छम-छम”।


आज भैंसिया के रैंकने की आवाज से नींद खुली। खटिया पर ही तुलसी के पत्तों से महकती चाय मिली। खटिया से उतर ही रहा था कि दो जनाब आए मौटरसाइकिल पर सवार होकर। पूंछ रहे थे कि “तुम्हारा पड़ा बिकाउ है का।” हमने कहा कि नहीं भइया हमाइ तो पड़िया है। हार की ओर निकला ही था कि चाचा जी की भैंस को लोग घेरकर खड़े थे। हाजमा खराब था, सो बांस की नार से उसे हिमालय बतीसा चूरन पिलाया जा रहा था। लोगो की भीड़ से भैंस बार-बार बिचक/बिदक रही थी।
पिता जी मामा जी के 3 साल के बच्चे से पूछ रहे थे-“बेटा, लैपटॉप माने का ?” तो वो जवाब देता था कंपूतर। अम्मा माने का ? तो वो बोलता था, दादी। टी माने चाय। आज चाचा जी को बुखार चढ़ आया तो मकान बना रहा कारीगर, जिसे हर बीमारी के पीछे देवी,देवता,मसान,प्रेत और देवता का हाथ नजर आता है। चाचा को सामने बिठाकर पूछ रहा था। “परमेशुरे को हो तुम, बताउत काए नहिया, का जलेबी खे हो।”
एक लड़का डोलची टांग के मठा लेने जा रहा है। एक सज्जन गरियाते हुए (प्रेमवश) “पीछे काए दुकाउत डोल्ची भोxxxx के शरामउत हो का” साले चांद में इतने पनहा(जूता) दे हें कि बार नही रे हें”। आज कई साल बाद चचेड़े की भरवां सब्जी खाई। मुझे याद है, कि पहले चौमासे में मेरे बाड़ा के छप्पर पर एक बेल पसरी रहती थी जिस पर खूब चचेड़े लगते थे। मेरी दादी चोमांसे से पहले लौंकी,कदुआ,तौरइ आदि के बीज बो देती थी। फिर दादी सांप जैसे चचेड़े अपने मन प्रेम वाले लोगों को भी बांट देतीं थी। मैं सबके घर देने जाता था। मेरी 84 वर्षीय दादी अभी भी खूब एक्टिव हैं। तरह-तरह के अचार,मुरब्बे और बुकनू की स्पेशलिस्ट दादी ने इसबार कुछ ज्यादा ही पुराने पेड़ा खिला दिए अपने पोते को।
उधर कारीगर चाची जी को बता रहा था कि एक बार हमाए मोड़ा को जोकि दिल्ली में पुताइ का काम करता है चक्कर ने दो बार पटक दिया था। फिर क्या दो अगरवत्ती लगाईं। उधर से मोड़ा का फोन आ गया कि चक्कर गायब। देवता उतर के भाग गया था। 
एक सज्जन चबूतरा पर बैठकर निजी अनुभव सुना रहे हैं। एक बार वो रात को खेत में पानी लगाने जा रहे थे तो रास्ते में एक भक्क सफेद आदमी रास्ता रोककर लेटा हुआ था। पर जैसे ही इन सज्जन ने टार्च जलाई वो चक्कर लम्फा कि तरह जलता हुआ भागा और गायब हो गया। वैसे इन सज्जन के पास भूत,प्रेत,मसान आदि से संबंधित बहुत से अनुभव हैं। साला में भी पुरानी यादों मे खो गया। जब रात में झींगुर की आवाज को ध्यान से सुनता था। और फील करता था कि भुतनी नाच रही है छम-छम। और फिर हनुमान चालीसा से डर भगाता था।
अंकू जिसे कल तक बुखार चढ़ा था, आज जैसे ही साइकिल से निकला दादी बोलीं-“कहां बीमार है जे तो भन्नात फिरत है।” कल देर शाम जब हार में घूमने गया तो मित्र कह रहा था, “तला में पानी बहुत है,देख के शौंचना नहीं तो मसान दाब लेगा।” थोड़ा पैर रपट गया तो वो कह रहा था कि “बच गए बेटा मसान खेंच रहा था तुम्हें।”
जब मैं यह कहानी लिख रहा हूँ। ढोलक बजने की आवाजें आ रही हैं। खैर ये भूतों की बारात तो नहीं निकल रही है। एक जगह से महिलाओं के गीतों की आवाज आ रही है। “श्याम बसो बिंदावन में, मेरी उमर बीत गयी गोकुल में ।” तो एक जगह से –दिल के अरमां आंसुओं में बह गए।
कत्तों के भूसनें की आवाजें आ रही हैं। तरह तरह से। मेरा पेट गुड़गुड़ा रहा है। आज शाम को चीले खाये थे। फिर भी दूध और च्वनप्राश खाना है। वैसे भी हमारे यहां दूध खाया जाता है पिया नहीं जाता। और हां मेरे गांव का विशाल तबका मुजफ्फरपुर के दंगो से बेखबर है। वैसे कई बार बेखबर होना भी बढ़िया होता है। अखबार का न पढ़ना और टीभी का न देखना भी अच्छा बी होता है, मानसिक शांति के लिए। लेलो क्रीम, पाउडर, शीशा, कंघा,बेंदा, नाखूनी, फीता,इंगुर। टीन टप्पर से पट्टी लेलो...फटे पुराने जूतन से केला लेलो...। बारन से पट्टी, चूरन लेलो।

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