नारी पोषण या शोषण


अपने देश में कोई भी पुरुष लंगोट पहनकर चौराहे पे खड़ा हो जाए तो संस्कृति को कोई खतरा नहीं होता ,पर बिकनी वाली तस्वीर से ही संस्कृति को बुखार चढ़ आता है !
अतिथियों को माला भले ही पुरुष पहनाए किन्तु माला को मंच तक लाने का काम सिर्फ महिलयों के हवाले होता है !
दीप तो मुख्य अतिथि ही प्रज्वलित करते हैं किन्तु मोमबत्ती और माचिस के साथ महिला ही खड़ी मिलेगी। ठीक इसी तरह पुरुस्कार या सम्मान अर्पण तो मंत्री ,अधि...
कारी द्वारा किया जाता है किन्तु सम्मान की सामग्री ,यथा -शाल ,स्मृति चिन्ह ,चेक ,और श्री फल इत्यादि मंच तक शालीनता पूर्वक  ले जाने का काम करते कहीं भी पुरुष करते हुए नहीं मिलेंगे !
अब हम पुरुष बिरादरी को लगने लगा है की ये स्वागत करना तो महिलाओं का काम है चाहे वो स्वागत गीत गाना हो या सरस्वती वंदना का ठेका तो इन्हे मिला ही हुआ है..... ..भूपेन्द्र प्रताप सिंह

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