आज करीब साढ़े बजे ही नींद
खुल गई। खच्च-खच्च की आवाजें आ रहीं थीं। अलसुबह गांव के लोग कुटी कतरने की मशीन
से करब और चारा कतर रहे थे। मैं खटिया से उठा और सीधा खेतों की ओर निकल गया। बिना
लोटा के। पता था कि तालाब में पानी तो भरा ही होगा।
रास्ते में कुछ दोस्त मिले।
रामजुहार हुई। वे अपनी-अपनी साइकिलों पर करब के गठा लादे चले आ रहे थे, पसीने से लथपथ। कुछ
बुजुर्गों ने सिर पर ही घास की पुटरियां लाद रखीं थीं। ओस की बजह से गीलीं थी।
मेरे चाचा का छोरा अपनी
साइकिल को चमकाने में लगा था। चिक शैंपू की मदद से। उसका मैन फोकस साइकिल के रिम
और तानें चमकाने पर था। पास में ही मेरे मित्र का छोटा भाई, भाई की शादी में मिली
मौटर साइकिल को दुल्हनिया की तरह सजा रहा था। लक्स शैंपू से धोकर, आर्टिफीशियल
माला मौटरसइकिल के गले में डाल दी थी। इतने में उसकी दादी आईं, देवि पूजि कमल
तुम्हारे जपती हुईं और अगरबत्ती जोर जोर से घुमाकर मौटर साइकिल की पूजा करने लगीं।
लोंडे ने जोर से सीट पर हाथ पटका और बोला, “अब छमिया रेडी है।”
घर लौटकर एक छोटी भगौनी दूध
और पोहा पेलकर, भीतर के आंगन में गया। जहां खटिया पर घर निर्मित चिप्स और जमीन पर
दौल पसरे हुए थे। दोनो पर थोड़ा सा हाथ साफ किया. बोले तो कुटक लिए।
मेरे फौज से रिटायर्ड पिता
जी ने इंजन चालू किया, करब कतरने के लिए उधर मैंने रसोई में जाकर भुने हुए चने जेब
में भरे। और बरक आया असली कामचोर की तरह। बाहर एक बुढ़ा आदमी सूप और डलियां बेच
रहा था। द्वार पर बैठीं दादी को बोला अम्मा ले लो डलिया। अम्मा ने पूछा कितने की
है। तो उस हाफते बूढ़े आदमी ने कहा 20 रुपया की। मेरी दादी बोलीं 10 देगें। बस फिर
क्या था, मेरे प्रवचन शुरू। पता ये आदमी हाथ से बनीं इन डलियों के लिए कितनी मेहनत
करता होगा। पहले बांस को छीलना,काटना,रंगना दिल्ली में यही डलिया 100 से कम में
नहीं बिकेगी।
हमेशा फुर्ती में रहने वाले
पिता जी एक झोला में दौल और चने लेकर किसी पंडित जी महाराज के देने जा रहे हैं।
पिता जी बता रहे थे कि महाराज का चने की रोटी खाने का बहुत दिनों से मन है। मुझे
बाद में पता चला कि इन्हीं पंडित जी की सलाह पर पिता जी ने पूना जाने के कन्फर्म
टिकट को कैंसिल करवा दिया है। पंडित जी ने कहा है कि पितृ पक्ष में कोई भी शुभ काम
नहीं करना है।
खैर आज का दिन बढ़िया रहा।
शाम को फिर हार में घूमने गया, शुद्ध आक्सीजन खाई। कल गन्ने चौखने का मूड है। वैसे नियम है कि
बिना देवुठान पूजा के खेत से गन्ना नहीं तोड़ना चाहिये। क्रमश: