रविवार, 4 मई 2014

न चाहते हुए भी कुछ ख्याल आ ही जाते हैं फिर उन ख्यालों में इतना डूब जाता हूँ कि आसपास क्या हो रहा है पता ही नहीं रहता कुछ लोग धीरे से पास आते हैं और बीच में ही टोक देते हैं क्यों टेंसन में हो उन्हें पता नहीं होता कि मै कुछ सोच सोच कर जिंदगी के मजे ले रहा हूँ क्योंकि यादों के भी अपने मजे होते हैं कुछ लम्हे ऐसे होते हैं कि जी चाहता है फिर से उनका दोहराव पर जानता हूँ ये असम्भव है फिर भी लगता है ऐसा फिर हो सकता है कोई छूटा हुआ साथी फिर से मिल सकता है न चाहते हुए भी कुछ ख्याल आ ही जाते हैं

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