काश तुम होती प्रेयसी मेरी
जी भर कर मोहब्बत करती मुझसे
तब फिर मै
तुम्हारे इस गुलाबी चेहरे को ..
ढक लेता अपनी हथेलिओं से
क्योंकि ये धूप तुम्हे बर्दाश्त नहीं होती ..
तुम तो बनी हो सिर्फ चाँद की रोशनी के लिए
पर कहाँ गर्म सूरज की तपन ..
कभी कभी लगता है ..
कि कहाँ तुम स्वछ झील सी
और मै मटमैला तालाब हूँ
तुम तो उस जंगल के पौधे जैसे
जहां किसी की पहुँच नहीं ..
काश तुम मेरी होती तो
रखता इतना संभल कर
अच्छे से जैसे हीरे और मोती
आपको समर्पित मेरा समर्पण ..