सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

दर्द होता है


दिल और दिमाग में 
बड़ा दर्द होता है 
जिसको देखना  चाहो 
और वो न दिखे 
जिसको पाना चाहों 
और वो न मिले 
दिल और दिमाग 
को तकलीफ तो तब भी होती है 
जब तुम इजहार करो 
और वो इनकार करे 
तकलीफ तो तब भी 
होती है जब तुम सवाल 
करो और जवाब न मिले 
स्वप्न जब चकनाचूर होते है 
तब भी दर्द होता है 
जिसको चाहों वो खफा हो जाये 
तब सिर्फ दुःख होता है 
कि वो खपा ही तो है 
मना लेंगे 
पर खपा होने लायक ही समझे 
तब भी दर्द होता है ...भूपेन्द्र प्रताप सिंह 

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

पत्थर (ए पोट्रेट ऑफ खाप)



खाप पंचायतों और ऑनर किलिंग का खौफ कुछ इस कदर तारी है कि इश्क की डली न निगलते बनती है, न उगलते। लेकिन इश्क की इबादत करने वाले परंपराओं की बंधी-बंधाई डोर छोड़ ऐसे ही मौज में घूमते रहेंगे, इस उम्मीद में कि कभी तो इस डली का स्वाद जुबां को सुकून दे सके। कुपरंपराओं को बेड़ियां बनाए रखने वाले इन भूतोंकी खब्त के लिए न बातें, न लातें, बस इश्क का यही जुनूं काफी है।
मैं अक्सर
पत्थर पर कागज लपेट
बुलाता था तुम्हें नदी किनारे
और तुम भी कभी नमक
या कभी चायपत्ती के बहाने
घर से निकल
दौड़ आती थी
उस कागज के सहारे
जानता हूं मैं कि
तुम सहेजे हुए हो
कागजों के साथ उन पत्थरों को भी
अभी तक।
तुम्हारे घर के सामने
चाय की दुकान पर
अखबार की ओट से
मैं तकता रहता था तुम्हें
दुकान से मुझे शहर नहीं
तेरा घर दिखता था केवल
आज तक नहीं समझ पाया मैं
कि अखबार में क्या छपता है और
तेरे अलावा।
उस रात भी मैंने पत्थर पर
ढेर सा प्यार लपेट
उछाला था तेरी खिड़की पर
पर न तुम आयी
न कोई जवाब।
उस दिन के बाद से
इक दरिया बहता है
हमारे घरों के बीच
सुर्ख लाल खून का
सुना है तुम्हारी ऐंठी हुई मुट्ठियों से
मेरे कागज न निकाल पाए थे वोे
लेकिन वो पत्थर
बिखरे पडे़ हैं अब तक मेरे सामने।
अब भी बैठता हूं मैं
उसी चाय की दुकान पर
अब भी अखबार में
कुछ नहीं छपता तेरे सिवा
और दुकान से अब भी
शहर नहीं
तेरा घर दिखता है केवल।