शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

“अब छमिया रेडी है।”

आज करीब साढ़े बजे ही नींद खुल गई। खच्च-खच्च की आवाजें आ रहीं थीं। अलसुबह गांव के लोग कुटी कतरने की मशीन से करब और चारा कतर रहे थे। मैं खटिया से उठा और सीधा खेतों की ओर निकल गया। बिना लोटा के। पता था कि तालाब में पानी तो भरा ही होगा।
रास्ते में कुछ दोस्त मिले। रामजुहार हुई। वे अपनी-अपनी साइकिलों पर करब के गठा लादे चले आ रहे थे, पसीने से लथपथ। कुछ बुजुर्गों ने सिर पर ही घास की पुटरियां लाद रखीं थीं। ओस की बजह से गीलीं थी।
मेरे चाचा का छोरा अपनी साइकिल को चमकाने में लगा था। चिक शैंपू की मदद से। उसका मैन फोकस साइकिल के रिम और तानें चमकाने पर था। पास में ही मेरे मित्र का छोटा भाई, भाई की शादी में मिली मौटर साइकिल को दुल्हनिया की तरह सजा रहा था। लक्स शैंपू से धोकर, आर्टिफीशियल माला मौटरसइकिल के गले में डाल दी थी। इतने में उसकी दादी आईं, देवि पूजि कमल तुम्हारे जपती हुईं और अगरबत्ती जोर जोर से घुमाकर मौटर साइकिल की पूजा करने लगीं। लोंडे ने जोर से सीट पर हाथ पटका और बोला, अब छमिया रेडी है।
घर लौटकर एक छोटी भगौनी दूध और पोहा पेलकर, भीतर के आंगन में गया। जहां खटिया पर घर निर्मित चिप्स और जमीन पर दौल पसरे हुए थे। दोनो पर थोड़ा सा हाथ साफ किया. बोले तो कुटक लिए।
मेरे फौज से रिटायर्ड पिता जी ने इंजन चालू किया, करब कतरने के लिए उधर मैंने रसोई में जाकर भुने हुए चने जेब में भरे। और बरक आया असली कामचोर की तरह। बाहर एक बुढ़ा आदमी सूप और डलियां बेच रहा था। द्वार पर बैठीं दादी को बोला अम्मा ले लो डलिया। अम्मा ने पूछा कितने की है। तो उस हाफते बूढ़े आदमी ने कहा 20 रुपया की। मेरी दादी बोलीं 10 देगें। बस फिर क्या था, मेरे प्रवचन शुरू। पता ये आदमी हाथ से बनीं इन डलियों के लिए कितनी मेहनत करता होगा। पहले बांस को छीलना,काटना,रंगना दिल्ली में यही डलिया 100 से कम में नहीं बिकेगी।
हमेशा फुर्ती में रहने वाले पिता जी एक झोला में दौल और चने लेकर किसी पंडित जी महाराज के देने जा रहे हैं। पिता जी बता रहे थे कि महाराज का चने की रोटी खाने का बहुत दिनों से मन है। मुझे बाद में पता चला कि इन्हीं पंडित जी की सलाह पर पिता जी ने पूना जाने के कन्फर्म टिकट को कैंसिल करवा दिया है। पंडित जी ने कहा है कि पितृ पक्ष में कोई भी शुभ काम नहीं करना है।
खैर आज का दिन बढ़िया रहा। शाम को फिर हार में घूमने गया, शुद्ध आक्सीजन खाई। कल गन्ने चौखने का मूड है। वैसे नियम है कि बिना देवुठान पूजा के खेत से गन्ना नहीं तोड़ना चाहिये। क्रमश:


शनिवार, 17 अगस्त 2013

प्रेम करने की आजादी पर बंदिशे आपरेशन मजनूं के नाम पे


आप ग्वालियर के पिछले चार पांच माह के अखबार पलिटए। आपको लगातार पढ़ने को मिलेगा कि फलां जगह पुलिस ने मजनुओं को मुर्गा बनाया, कान पकड़ कर उठक बैठक लगवाईं, लड़के को साथ की लड़की से बहिन बुलवाया इत्यादि। मतलब अब शहर में प्रेम पर फुल पाबंदी है। आप शहर में अपनी मित्र के साथ न घूम सकते हो, न कहीं बैठकर तसल्ली से बात कर सकते हो। एक लड़का और लड़की मित्र भी हो सकते हैं, ऐसा करना कोई गुनाह तो है नहीं। पर ग्वालियर में ऐसा करना जुर्म है।
 बालिग प्रेम कर सकते हैं, ये उनका अधिकार है। अगर आप उन्हें ऐसा करने से रोक रहे हो तो अपऱाधी आप हो। रही बात नाबालिग लड़के और लड़के की, तो उन्हें भी दोस्ती करने से रोका नहीं जा सकता। पर पुलिस को तो हर युवक मजनूं दिखाई देता है और इसी के नाम पर प्रेमिका के सामने एक युवक को अपमानित किया जाता है। वैसे लैला मजनूं होना कहां का गुनाह है भइया।
एक तरफ पुलिस को प्रेमी जोड़े को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए, पर यहां तो पुलिस उल्टी प्यार की दुश्मन की भूमिका में है। आपकी जायज शिकायतें तो नजरअंदाज हो सकती हैं पर मॉल जैसी जगहों पर पुलिस बिना शिकायत के धावा बोल सकती है। जबकि मॉल जैसी जगहों पर कैमरा के साथ कड़ी सुरक्षा भी रहती है, वहां छेड़छाड़ की गुंजाइश नगण्य होती है। पर पुलिस वहां भी डंडा चलाने से गुरेज नहीं करती ।लड़के लड़की को खूब अपमानित तो किया ही जाता है, साथ में घर पर फोन करके बच्चों को शर्मिंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती।
भई ऐसे युवक और युवती पुलिस के लिए आसान शिकार जो हैं। जबकि ठीक उसी समय, जब पुलिस इन नवयुवक और युवतियों पर जुल्म ढा रही होती है, शहर में सरकारी जमीनों पर कब्जा हो रहा होता है। दलितों और महिलाओं पर अत्याचार हो रहे होते हैं। सरकारी दफ्तरों से लेकर प्राइवेट कॉलेजों में लूट मची होती है। पुलिस हफ्ता वसूल रही होती है। सफेदपोश यूनीवर्सटी की जमीन हथियानें के षढयंत्र रच रहे होते हैं। क्या पुलिस इनसे भी उठक-बैठक लगवाएगी, इन्हें भी मुर्गा बनाएगी ?
लड़के लड़कियों को जबरन थाने में बैठाना। एक प्रेमिका के सामने उसके प्रेमी को अपमानित करना। पुलिस को शायद मालूम नहीं होगा कि उसके ऐसे कृत्य कई गंभीर घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। इन्हीं चार माह के दौरान कई ऐसी खबरें पढ़ने को मिलीं, जिसमें लड़का घर से बिना बताए गायब हो गया। लड़की ने खुदकुशी कर ली। लड़के ने आत्महत्या कर ली।
प्रेम करने की आजादी पर बदिशें लगाकर तुम्हें क्या मिल रहा है ? सिर्फ झूंठी शान और वीरता का गुमान। इस तरह की संकीर्ण मानसिकता देश के भविष्य के लिए घातक है, जो आजाद देश में गुलाम होने का बराबर अहसास कराती है।
हमें पता है कि इसतरह के जुल्मों के सहारे तुम असल मुद्दों से जनता का ध्यान भटका रहे हो। इस तरह के कृत्यों के लिए सिर्फ पुलिस ही नहीं वरन पत्रकार, संपादक, सुधी पाठक, अभिभावक,छात्र नेता, न्यायपालिका सब जिम्मेदार हैं।
समाज में अराजक तत्व होते हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। वो दंड के पात्र हैं पर दो लोग सहमति से प्रेम कर रहे हैं, पुलिस बिना किसी शिकायत के इकतरफा कार्रवाई नहीं कर सकती। जबकि शहर में देशभर से छात्र पढ़ने आते हैं, तो अमूमन एक दूसरे की मदद और दोस्ती होना आम बात है। कई लड़कियों को जब किसी मदद की जरूरत होती है तो वो सीधे अपने सहपाठी को फोन करती हैं। अब आप ही बताओ कि क्या उन्हें पुलिस को फोन करके मदद मांगनी चाहिए ?

अरे तुम्हें रोकना ही है तो महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकिए। गैरबराबरी को रोकिए। जब फिल्म देखते हो तो प्रेमी-प्रेमिका के मिलन के लिए माला जपते हो, प्रेमी-प्रेमिका के विरोधियों से नफरत करते हो। और असल जिंदगी में खुद विलेन बन जाते हो। महिलाओं की सच में फिकर है तो उनकी रपट को दर्ज करके समय पर कार्रवाई करिए। वास्तविक हिंसा को रोको। पर प्रेम पे बंदिश लगाने का पाप मत करो।

गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

सिगरेट कथा पार्ट -2

सिगरेट कथा पार्ट -2

तेरे प्रति दीवानगी इतनी
की झेलनी पड़ती है डांट और मार
घर पर भी होती है खूब बेइज्जती \
खूब की सौंफ, इलायची, माउथ फ्रेशनर से बचने की कोशिश
बारात में बीडी वाले भी पीते हैं सिगरेट

कभी खेत में तो कभी जंगल में तो कभी एकांत में

तुलसी के पत्ते और न जाने क्या क्या चवाया

पर तेरी महक ही ऐसी कि

दुश्मनो को पता चल ही जाता है

दोस्त मिले तो या बिछड़े

सबसे पहले जलेगी सिगरेट

चाय पानी तो बाद की बात है

गाँव में बण्डल से शुरूआत

शहर में सीधे सीधे सिगरेट से

दीवानगी और डर भी कहीं पकडे न जाएँ

अभी दो मित्र पकडे गए

क्योंकि चिप के रखा था माउथ फ्रेशनर

घर के अन्दर और गेट के बाहर

18 वर्ष से कम उम्र वालों को बेचना है अपराध

शायद इस रूल का पालन करता होगा एक आध
12-14 साल के लौंडे भी खूब छल्ले और अंडे बनाते हैं
होड़ लगती है गोल्डन कश तक की
(नोट - लेखक सिगरेट पीने का हिमायती नहीं है , किन्तु कुछ लोगों का मानना है कि सिगरेट पीने से उन्हें फायदा होता है जैसे सर दर्द ,बदन दर्द,थकान ,टेंशन ,कब्जी इत्यादि ऐसे लोगों में डोक्टर ,प्रोफ़ेसर वैज्ञानिक ,लेखक आदि शामिल हैं )
 

वो सिगरेट जला लेते हैं....

जब कुछ काम नहीं होता तो वो सिगरेट जला लेते हैं 
जब उन्हें थोड़ी खुंदक /गुस्सा आती है तो सिगरेट जला लेते हैं 
जब वो खुश होते हैं तो सिगरेट सुलगने लगती हैं थोक में 
बियर खुलेगी तो सिगरेट जलेगी 
दारू पिवेगी तो भी सिगरेट जलेगी 
गर्लफ्रेंड नाराज तो सिगरेट से गम हल्का होगा 
किसी ने डांट दिया तो फिर सिगरेट की ओर रुख होगा 
थकान ,सर में दर्द तो इलाज भी सिगरेट से होगा 
कभी पखाने में तो कभी तहखाने में अरे छोड़ो मयखाने को
रास्ते लम्बे हों तो सिगरेट का साथ होगा
मौसम ठंडा तो गर्मी भी सिगरेट से मिलेगी
दोस्ती और दुश्मनी सिगरेट के छल्ले
खुशी और गम में साथ,, जब सिगरेट होगी आपके हाथ ..

सोमवार, 25 मार्च 2013

हर व्यक्ति आला दर्जे के सवाल पूंछे, असंभव है

हर व्यक्ति आला दर्जे के सवाल पूंछे, असंभव है । व्यक्ति के विचारों का स्तर अंतर्राष्ट्रीय दर्जे का हो, नामुमकिन है भैया । प्रत्येक इंसान की पृष्ठभूमि अलग अलग होती है । व्यक्ति की सोच का निर्धारण बहुत हद तक सामाजिक ढांचा भी तय करता है । बैतूल जिले के किसी गाँव के व्यक्ति का सवाल गाजियाबाद के व्यक्ति से अलग ही होगा । हो सकता है कि बैतूल जिले वाले का सवाल ज्यादा गंभीर किस्म का हो । जब मैं गाँव जाता हूँ तो लोगो के सवालों और जबावों का स्तर अलग अलग होता । कुछ लोगों ने पूंछा कि दिल्ली में लड़के लड़की साथ पढ़ते हैं । खूब मस्ती होती होगी । कुछ लोगों ने टीवी एंकर और रेडियो जोकी के बारे में अपनी राय बताई जिसे हम बेहूदा श्रेणी में रख सकते हैं । लोगों के सवाल भी कई बार बड़े आपत्तिजनक होते हैं । हालांकि मैं अपने स्तर पर विस्तार से समझाने की कोशिश करता हूँ । फिर मैं स्वयं के बारे में भी सोचता हूँ । जब मैं 6वी में था । अख़बार(आज अख़बार ) में सबसे पहले लास्ट के पन्ने पर छपी रंगीन फोटो देखता था । पर आज ऐसा नहीं है । कुछ लोगों ने कहा है कि जिन 22 लोगों ने पोस्ट को लाइक किया है उन्हे भी माफी मांगनी चाहिए । भैया हर व्यक्ति कि पसंद महान हो थोड़ा मुश्किल है । दैनिक भास्कर और इंडिया टुडे जैसे संस्थान पाठकों के टेस्ट के हिसाब से ख़बरें परोस रहे हैं । क्योंकि उन्हे पता है कि लोगों को क्या पसंद है । उन २२ लोगों को पोस्ट अच्छी लगी और पूरी ईमानदारी के साथ लाइक बटन क्लिक कर दिया । हालांकि कुछ लोग पसंद आए बिना भी लाइक कर देते हैं । उनपर माफी के लिए दबाव डालना निहायत ही फासीवादी है । जिन लोगों को हम दोयम दर्जे का कहते हैं । ऑक्सफोर्ड , कैंब्रिज , जेएनयू या फिर आईआईएमसी कहीं भी हो सकते हैं । १५ मिनट के साक्षात्कार में किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को परखना थोड़ा मुश्किल भरा काम है । जिन लोगों को नौकरी मिल जाती है उनकी मानसिकता महान है और जिन्हे नौकरी नही मिली वो कुंठित मानसिकता के लोग होते हैं , थोड़ा संदेह है । किसी को भयंकर मानसिक तनाव देना और उसको धमकाकर आनंद हासिल करना, गंदे निजी सवाल पुंछने से ज्यादा बुरा है । हिंसात्मक प्रतिक्रियाएँ दे रहे लोग घोर नारीवादी चिंतक और हितैषी होंगे थोड़ा संदेह है । फेसबुक पर जो लिखा जाता है सदैव वास्तविक नहीं होता । वास्तविकता कुछ और भी हो सकती है । आपने जो लिखा वो सनातन सत्य है । आपको मेरी लिखी हुई बातें माननी ही होंगी । ये भी फासीवादी रवैया है । मुझे इंडिया टुडे की अपेक्षा तहलका पसंद है जबकि देश में सबसे ज्यादा सरस सलिल पढ़ी जाती है । इंडिया टीवी की टीआरपी एनडीटीवी से ज्यादा होती है । अंधभक्त होना बुरा है । पर कुछ लोगों को अपने बनाए हुये भगवान के लिए हिंसा पर उतारू होना पसंद है । कई बार में गंभीर बात करता हूँ । पर लोग रूचि नहीं लेते । कई बार हल्की फुलकी बात पर सहमतिपूर्ण समर्थन मिल जाता है । कुछ लोगों की यह प्रतिक्रियाएँ कि अब इनका मीडिया में कैरियर बनने से रहा । एक तरह कि ब्लेकमेलिंग है । इन्हे भी माफ़ी मांगनी चाहिए । कभी कभी उदारवादी लोगों को भी फासीवादी भाषाशैली का प्रयोग करते देखा जा सकता है । खुद प्रोगरेसिव बनकर लीक से हटकर मुद्दा उठाना पसंद होता है । कई बार हम मनमाफिक सवालों की उम्मीद कर बैठते हैं । एक ऑटो वाला, बस वाला अपने हिसाब से गानों , फिल्मों और साहित्य का चयन करता है । अगर हम उससे कहें, भाई ईरान का सिनेमा देखो वर्ल्ड सिनेमा देखो । अच्छे विचार रखना बेहद आसान है पर उनको आचरण का रूप देना थोड़ा कठिन है ।
जब हम आउट ऑफ बॉक्स राय रख रहे होते हैं तब आउट ऑफ बॉक्स सवालों के लिए भी तैयार रहना पड़ता है । अभिनेत्रियाँ जिन्हें हम हीरोइन कहते हैं । इनके प्रति किस तरह की राय रखते हैं सब वाकिफ हैं । पत्रकारीय शिक्षा कहती है कि जाने माने व्यक्ति से जुड़े तथ्य भी ख़बर के रूप में स्वीकार्य हैं । आखिर लोक रुचि का सवाल है ।
लोगों को क्या पूछना चाहिए ? क्या देखना चाहिए ? क्या पसंद करना चाहिए ? इसका निर्धारण हम नही कर सकते । व्यक्तिगत कुंठाओ को दवाना खुद के साथ हिंसा जैसा है। बाहर निकालना ज्यादा बेहतर है ताकि समय रहते ट्रीटमेंट किया जा सके ।
अगर तुच्छ मानसिकता का ठप्पा लगाकर, माफ़ी के लिए मजबूर करें तो देश में मनोहर कहानियाँ और कथाएँ पढ़ने वालों की बहुत लंबी लाइन लग जाएगी । हो सकता है कि ९० फीसदी जनसंख्या आ जाए ।
तथाकथित आतंकी और नक्सलवादियों के बारे में लोग दो तरह की राय रखते हैं . एक वर्ग का मानना है कि इनकी भाषा में जवाब देना ज्यादा बढ़िया है . जबकि दूसरे वर्ग का मानना है कि समस्या की मूल जड़ को समझना और उसका ट्रीटमेंट करना बेहतर कदम होगा , हमारे वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए . मैं दूसरे वर्ग में शामिल हूँ .

सोमवार, 18 मार्च 2013

वो हैं इतने बुझदिल और कायर

वो हैं इतने बुझदिल और कायर 
अपने आसपास होती छेड़छाड़ 
नजरअंदाज़ कर देते हैं 
पर जैसे ही उनकी नजर 
प्रेमी जोड़े पर जाती है 
इक नजारा नजर आता है 
नजर में दोष इतना कि 
प्रेम भी पाप नजर आता है 
नज़रों में जलन और नफरत इतनी 
कि बिना रुके टोकने लगते 
उनको ललकारने लगते 
कहते है कि ये गन्दा काम क्यों 
यहाँ तुम ऐसा नहीं कर सकते (भूपेन्द्र )

शुक्रवार, 8 मार्च 2013

युद्ध से कभी कुछ आबाद नहीं होता



युद्ध से कभी कुछ आबाद नहीं होता
बना हुआ जहां बर्बाद होता है
क्या बीतती होगी उनपर जो है
सीमा के नजदीक
किसान ,सैनिक ,बूढ़े और बच्चे
बारूद का आग उगलता गोला
तबाही का मंजर ही तो पेश करता है
खेत में काम करते किसान की छाती में
धस जाती हैं एल एम जी की मोटी गोलियां
वो तो बेचारा बे फिकर था इस मंजर से
अपने आँचल से दूध पिलाती माँ के
ऊपर भी आग का गोला गिरता है
स्कूल में , अस्पतालों में भी आसमान से गोले गिरते हैं
सो रहे सैनिकों के ऊपर भी ...
धुआँ और आग से त्राही माम मच जाता है
जीवन का चक्र ही बदल जाता है
हरे भरे खेत , जंगल ,पेड़ ,पौधे भी काले हो जाते हैं
गाय , भैंस ,बकरी भी मर जाते हैं
मेहनत से बनाए गए आशियाने
भी पल भर में उजड़ जाते हैं
फिर भी  कुछ लोग कहते हैं
युद्ध तो होना चाहिए
लड़ाई तो होनी चाहिए
शायद वो बेखबर हैं इस मंजर से (भूपेन्द्र प्रताप सिंह )

खुद से सवाल करती , खुद की कविता



मैं लाख कोसता हूँ इस  दुनिया को
जबसे जन्मा हूँ खूब लुत्फ उठा रहा हूँ
कहता हूँ कि पेड़ मत काटो
पर मैंने खुद कितने पेड़ लगाए हैं
खूब बरगद की  छाया में खेला
खूब फल फूलों का लुत्फ उठाया है
दोषारोपण करता कि हम पिछड़े हैं
अरे मैंने आगे बढ़ाने के लिए क्या किया
न कोई आविष्कार न कोई चमत्कार
जो छत मुझे नसीब हुई किसी और की
मेहनत और पसीने से बनी थी
अब तक किया क्या है मैंने
बस इस सुंदर दुनिया का
लुत्फ ही तो उठाया है
मनोरंजन तो किया मैंने
पर मैंने दूसरों का मनोरंजन किया है कभी
दूसरों के आविष्कारों का
दूसरों कि मेहनत का लुत्फ उठाया है
जो मैं खाता हूँ
बनाता कोई और उगाता कोई और है
जिस सड़क पर चलता हूँ
कितनी मेहनत और कितना पसीना
बहाया होगा उस  मनुष्य ने
गंतव्य तक पहुचाने वाले की मेहनत
तमाम कारीगरों, मेहनतकशों, वैज्ञानिकों
तुम्हें नज़रअंदाज़ करता रहा हूँ मैं
इस दुनिया को खूबसूरत बनाने वालो
ताजमहल, किले और महल बनाने वालों
तुमने कितनी मेहनत की होगी
हम तो बस मजे लेते हैं
सुंदर बाग बगीचों का
कुछ खयाल ही नहीं रहता
जिन्होने पुल, बांध बनाए होंगे
जरा पुंछ खुद से तूने इस दुनिया को क्या दिया
जो हक है तुझे आलोचना करने का
अब बेहतर होगा कि आलोचना से पहले
कुछ तू भी दे दे , कुछ बना दे इस दुनिया के लिए
अभी तक तूने सिर्फ भोगा ही तो है
किया क्या है
किताबें ,कपड़े ,बर्तन ,घर ,सड़क ,वाहन, भोजन, तकनीक, खेल
तूने क्या बनाया ? क्या है तेरा योगदान ? जो मैं कह सकूँ मेरा भारत महान ........भूपेन्द्र


बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

काश तुम होती प्रेयसी मेरी

काश तुम होती प्रेयसी  मेरी 
जी भर कर मोहब्बत करती मुझसे 
तब फिर मै 
तुम्हारे इस गुलाबी चेहरे को ..
ढक लेता अपनी हथेलिओं से 
क्योंकि ये धूप तुम्हे बर्दाश्त नहीं होती ..
तुम तो बनी हो सिर्फ चाँद की रोशनी के लिए 
पर कहाँ गर्म सूरज की तपन ..
कभी कभी लगता है ..
कि कहाँ तुम स्वछ झील सी 
और मै मटमैला तालाब हूँ 
तुम तो उस जंगल के पौधे जैसे 
जहां किसी की पहुँच नहीं ..
काश तुम मेरी होती तो 
रखता इतना संभल कर 
अच्छे से जैसे हीरे और मोती 
 आपको समर्पित मेरा समर्पण ..

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

चिड़िया ,कबूतर ,कोयल ,बतख ,मोर ,गौरैया , तोता

चिड़िया ,कबूतर ,कोयल ,बतख ,मोर ,गौरैया , तोता ..
जब बीमार होते होंगे तो इलाज़ कहाँ करवाते होंगे ......
शायद प्रकृति इनकी देखभाल करती होगी ..
क्योंकि मैंने लावारिस इंसान तो सड़क पर मरते देखें है 
पर पक्षियों को यहाँ वहाँ मरे हुए नहीं देखा ..
जबकि उनकी संख्या भी लाखों करोडो हैं 
पता नहीं ये अपने प्राण कहाँ त्यागते हैं 
या फिर कभी मरते ही नहीं ....
हाँ कभी कभी ओलों से घायल पक्षी जरूर देखें हैं 
जो पक्षी इंसान के चंगुल में फस गए 
उनको मैंने बीमार सा देखा है ..
निराश और उदास सा देखा है ...
क्या आपने कभी पक्षीयों को 
मरते ,तडपते ,बीमार हालत ने देखा है 
इंसानों की तरह .....शायद यदा कदा ......

गुरुवार, 3 जनवरी 2013


एक चीख रात को चीर के माँ के हिरदय तक आई
और एक नन्ही  सी  आवाज़  सुन के माँ  तो बहुत रोई
माँ मुझे  मत  मरो, मत  मरो  नन्ही सी जान  को
जनम से पहेले ही मत मरो इस अनजान को

बस माँ ही सुन  सकती थी  उसकी  करुण  पुकार
करना  तो बहुत कुछ चाहती  थी पर वो थी लाचार
आखिर वो किया  कर  सकती  थी  वो डरी  सहमी थी औरत
न तो उसमे  इतनी  हिम्मत थी की वोह करती बग़ावत

तो उसने भर कर आंखों में आंसू का मोती कहा
तेरी अच्छी किस्मत है जो तू जनम नहीं लेती
जनम  लेकर भी  आखिर तू किया करेगी
इस दुनिया में औरत का कोई सामान नहीं

किया करेगी यहाँ आकर, जहाँ तेरे लिए कोई प्यार नहीं
तू ही है जो सारा जीवन दोहेरी भूमिका निबह्न्येगी 
सबकी  सेवा करेघी  तू, पर  सामान  नहीं पायेगी
अरे  मेरी नन्ही  जान, जनम न लेने में ही है तेरी भलाई 

और यह कह कर माँ की वेदना  और गहराई
पर बेबुस आवाज़ आई, मुझे बस एक मौका दे दो
मुझे एक बार दुनिया में तो आने दो
में अपना ही इन्देर्दानुस बनाउंगी 

चलो, चलो माँ एक नरक से कहीं दूर चलते है
तुम्हे  यह  समझना  होगा  की नारी से ही वंश चलते  है
हाँ  तुम  ठीक   कहेती  हो, और माँ एक हॉस्पिटल में पहुंची
जहाँ नीतू का जनम हुआ और जीत हुई नारी की

समय  बदला, समाज  बदला  बदला  गयी  दुनिया  सारी
समझ  गया  अब  संसार  सारा  अभी  नारी  नहीं  अबला  बेचारी.