शनिवार, 17 अगस्त 2013

प्रेम करने की आजादी पर बंदिशे आपरेशन मजनूं के नाम पे


आप ग्वालियर के पिछले चार पांच माह के अखबार पलिटए। आपको लगातार पढ़ने को मिलेगा कि फलां जगह पुलिस ने मजनुओं को मुर्गा बनाया, कान पकड़ कर उठक बैठक लगवाईं, लड़के को साथ की लड़की से बहिन बुलवाया इत्यादि। मतलब अब शहर में प्रेम पर फुल पाबंदी है। आप शहर में अपनी मित्र के साथ न घूम सकते हो, न कहीं बैठकर तसल्ली से बात कर सकते हो। एक लड़का और लड़की मित्र भी हो सकते हैं, ऐसा करना कोई गुनाह तो है नहीं। पर ग्वालियर में ऐसा करना जुर्म है।
 बालिग प्रेम कर सकते हैं, ये उनका अधिकार है। अगर आप उन्हें ऐसा करने से रोक रहे हो तो अपऱाधी आप हो। रही बात नाबालिग लड़के और लड़के की, तो उन्हें भी दोस्ती करने से रोका नहीं जा सकता। पर पुलिस को तो हर युवक मजनूं दिखाई देता है और इसी के नाम पर प्रेमिका के सामने एक युवक को अपमानित किया जाता है। वैसे लैला मजनूं होना कहां का गुनाह है भइया।
एक तरफ पुलिस को प्रेमी जोड़े को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए, पर यहां तो पुलिस उल्टी प्यार की दुश्मन की भूमिका में है। आपकी जायज शिकायतें तो नजरअंदाज हो सकती हैं पर मॉल जैसी जगहों पर पुलिस बिना शिकायत के धावा बोल सकती है। जबकि मॉल जैसी जगहों पर कैमरा के साथ कड़ी सुरक्षा भी रहती है, वहां छेड़छाड़ की गुंजाइश नगण्य होती है। पर पुलिस वहां भी डंडा चलाने से गुरेज नहीं करती ।लड़के लड़की को खूब अपमानित तो किया ही जाता है, साथ में घर पर फोन करके बच्चों को शर्मिंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती।
भई ऐसे युवक और युवती पुलिस के लिए आसान शिकार जो हैं। जबकि ठीक उसी समय, जब पुलिस इन नवयुवक और युवतियों पर जुल्म ढा रही होती है, शहर में सरकारी जमीनों पर कब्जा हो रहा होता है। दलितों और महिलाओं पर अत्याचार हो रहे होते हैं। सरकारी दफ्तरों से लेकर प्राइवेट कॉलेजों में लूट मची होती है। पुलिस हफ्ता वसूल रही होती है। सफेदपोश यूनीवर्सटी की जमीन हथियानें के षढयंत्र रच रहे होते हैं। क्या पुलिस इनसे भी उठक-बैठक लगवाएगी, इन्हें भी मुर्गा बनाएगी ?
लड़के लड़कियों को जबरन थाने में बैठाना। एक प्रेमिका के सामने उसके प्रेमी को अपमानित करना। पुलिस को शायद मालूम नहीं होगा कि उसके ऐसे कृत्य कई गंभीर घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। इन्हीं चार माह के दौरान कई ऐसी खबरें पढ़ने को मिलीं, जिसमें लड़का घर से बिना बताए गायब हो गया। लड़की ने खुदकुशी कर ली। लड़के ने आत्महत्या कर ली।
प्रेम करने की आजादी पर बदिशें लगाकर तुम्हें क्या मिल रहा है ? सिर्फ झूंठी शान और वीरता का गुमान। इस तरह की संकीर्ण मानसिकता देश के भविष्य के लिए घातक है, जो आजाद देश में गुलाम होने का बराबर अहसास कराती है।
हमें पता है कि इसतरह के जुल्मों के सहारे तुम असल मुद्दों से जनता का ध्यान भटका रहे हो। इस तरह के कृत्यों के लिए सिर्फ पुलिस ही नहीं वरन पत्रकार, संपादक, सुधी पाठक, अभिभावक,छात्र नेता, न्यायपालिका सब जिम्मेदार हैं।
समाज में अराजक तत्व होते हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। वो दंड के पात्र हैं पर दो लोग सहमति से प्रेम कर रहे हैं, पुलिस बिना किसी शिकायत के इकतरफा कार्रवाई नहीं कर सकती। जबकि शहर में देशभर से छात्र पढ़ने आते हैं, तो अमूमन एक दूसरे की मदद और दोस्ती होना आम बात है। कई लड़कियों को जब किसी मदद की जरूरत होती है तो वो सीधे अपने सहपाठी को फोन करती हैं। अब आप ही बताओ कि क्या उन्हें पुलिस को फोन करके मदद मांगनी चाहिए ?

अरे तुम्हें रोकना ही है तो महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकिए। गैरबराबरी को रोकिए। जब फिल्म देखते हो तो प्रेमी-प्रेमिका के मिलन के लिए माला जपते हो, प्रेमी-प्रेमिका के विरोधियों से नफरत करते हो। और असल जिंदगी में खुद विलेन बन जाते हो। महिलाओं की सच में फिकर है तो उनकी रपट को दर्ज करके समय पर कार्रवाई करिए। वास्तविक हिंसा को रोको। पर प्रेम पे बंदिश लगाने का पाप मत करो।

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